स्वाद
स्वाद
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छूटते हाथ की अंगुली पे,
मैंने कुछ रक्खा है,
खटास छोड़कर
मीठे का स्वाद रक्खा है।
बुलंदी आसमान का
तारा तो बना देती है
जमीं पे रहके यह
अहसास जज्ब रक्खा है।
वाह-वाही साजिशों में भी
हुआ करती हैं,
पंख फैला कि जा मैंने तुझे
दिल में बसा रक्खा है।
मुनासिब नहीं हर वक्त
तेरी पहरेदारी,
ऐ शहर, ऐ तेरे दोस्त
हर बलाओं से मंसूब रक्खें।
अब कहां कुछ कहने
सुनने का वक्त,
बचा है मुंसिफ
गवाह तुम, वकील तुम
मुझको कटघरे में
खडा रक्खा है।
छूटते हाथ की अंगुली पे
मैंने कुछ रक्खा है
पंख फैला कि जा मैंने तुझे
दिल में बसा रक्खा है।