Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Vidhi Mishra

Classics

4.9  

Vidhi Mishra

Classics

गुरु

गुरु

1 min
462


एक कोरे कागज़ सा खाली था मैं,

मेरे गुरु ने पुस्तक बना दिया,

सूखी मिट्टी सा बेजान था मैं,

मेरे गुरु ने सींच कर एक

मज़बूत घड़ा बना दिया।


बंजर ज़मीन के जैसा था मैं,

मेरे गुरु ने मुझमें ज्ञान का पौधा उगा दिया,

सुलगती धूप में अकेला चल रहा था मैं,

मेरे गुरु ने हाथ थाम कर अपनी

शीतल शरण में मुझको ले लिया।


न कोई अस्तित्व था मेरा,

न थी कोई पहचान,

समझाकर असली महत्व कलम का

मेरे गुरु ने साक्षर बनाया मुझको,

जगा दिया मुझमें स्वाभिमान।


आज भी वो शब्द नहीं मिलते जिनसे

कर सकूँ उस ज्ञान की प्रतिमा का वर्णन,

सात जन्म भी कम पड़ेंगे करने में

अपने ईश्वर रूपी गुरु का अभिवादन।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics