एक अनजान रास्ता
एक अनजान रास्ता
एक अनजान रास्ता है
और सफर काफी लंबा है
कही दूर कोई सूरज नज़र आता हैं
हर सुबह
बस उसकी रौशनी में खो जाने को
मैं भी एक कदम बढ़ा देती हूँ हर रोज
अनजाना सा ही सही।
क्या करूँ उस रौशनी से इतर नही हैं
मेरा वजूद
उसके नज़दीक जाकर
इस दिल को सुकून जो मिलना है
खबर इसे भी है औऱ जमाने को भी
की वहाँ जाकर बस
राख हो जाना है।
हूँ पुतला मिट्टी का मिट्टी में ही तब्दील
हो जाना हैं।
फिर भी न जाने क्यो
उस ओर चलती ही जा रही हूँ।
न जाने सपना है
या मुझे अपनो से
से दूर बहुत दूर ले जाने की कोई साज़िश।
किसी दुश्मन का तो हाथ
भी नहीं लगता इसमें
ये तो ऊपर वाले ने लकीर नमक
कहानी जो गड़ दी है
गदेली में....
मैं बस चलती चली जा रही हूँ
चलती जा रही हूँ वहाँ जाकर खो जाने को
उस रौशनी में भस्म हो जाने को।