क्षितिज की ओर....
क्षितिज की ओर....
प्रचंड सा कोई घाव लेकर,
तुम समय की नाव लेकर,
दौड़ पड़ना अकेले ही तुम
क्षितिज की ओर.....
तुम कभी डर के विरह से
आकर किसी अनजानी गिरह में
पग न डगमग करना तुम
क्षितिज की ओर....
प्रचंड सा कोई घाव लेकर,
तुम समय की नाव लेकर,
दौड़ पड़ना अकेले ही तुम
क्षितिज की ओर.....
देखों अँधियारा घटकर रहेगा
सूरज भी रोशनी में बटकर कहेगा,
ये किरणों के रास्ते चलो तुम
क्षितिज की ओर...
तप कर ज़िंदगी की भट्टी में
लेकर चन्द्रमा से शीतल राख
भरकर चलना एक लम्बी सांस तुम
क्षितिज की ओर....
प्रचंड सा कोई घाव लेकर,
तुम समय की नाव लेकर,
दौड़ पड़ना अकेले ही तुम
क्षितिज की ओर.....