उन्हीं के वास्ते
उन्हीं के वास्ते
उन्हीं के वास्ते सूरज में आई है नरमी;
उन्हीं के वास्ते बढ़ने लगी है सरगर्मी;
उन्हीं के वास्ते रौशन हुए हैं सब जुगनू;
उन्हीं के वास्ते ख़ुशबू हुई है बेकाबू;
उन्हीं के वास्ते पागल हुई है बादे-सबा;
उन्हीं के वास्ते गुलशन पे छा गया है नशा;
उन्हीं के वास्ते तारे ज़मीं पे उतरे हैं ;
उन्हीं के वास्ते सहरा में रंग बिखरे हैं;
उन्हीं के वास्ते बादल हुए हैं दीवाने;
उन्हीं के वास्ते सच्चे हुए हैं अफ़साने;
उन्हीं के वास्ते इठला रहा है आज चमन;
उन्हीं के वास्ते हैं फूल सारे मह्वे-सुख़न;
उन्हीं के वास्ते सारे फितूर हैं शायद;
उन्हीं के वास्ते हम चूर चूर हैं शायद;
उन्हीं के वास्ते आहो-बुका है सीने में;
उन्हीं के वास्ते दिल रो रहा है सीने में;
उन्हीं के वास्ते सहते रहे हैं जुल्मों-सितम;
उन्हीं के वास्ते चलती रही हमारी क़लम;
हम अब जो जान से जाए तो कोई बात बने;
वो रुख़ से पर्दा हटाएँ.. तो कोई बात बने।।