भट्टी
भट्टी
कितनी गर्मी है अन्दर और बाहर,
बाहर धूप है और भीतर दुःख,
रुमाल गन्दा है पसीने से, पसीने में बदबू है, खारापन है,
अथाह परिश्रम का गीलापन है,
औज़ारों से कटी पिटी उँगलियों में काँटों की चुभन है,
नर्म स्पर्श की भूख है,
हथेली की पित्ठ्नो में इस्पात की सख़्ती है,
भट्टी के सामने बैठे मेरे दिमाग में गर्मी है,
गर्म लोहे पर चोट मारने का जल्दीपन है,
भट्टी में कोयला है, अच्छा ईंधन है,
और ईंधन की भूख वाली भट्टी सारे कोयले को खा गई,
भट्टी बुझी जाती है और इसमें आग बनाऐ रखने का मेरा काम ...
हड़बड़ाहट में मैं अपने स्वप्न डाल देता हूँ भट्टी में,
अनेकों स्वप्न झोक देता हूँ, आह!....
भट्टी में फिर आग है,
पहले से ज्यादा गहरी,
पहले से ज्यादा पीली,
अब में ज़्यादा से ज़्यादा स्वप्न देखता हूँ,
ज़्यादा से ज़्यादा ईंधन पाता हूँ |