ज़िंदगी
ज़िंदगी
ज़िंदगी है इक सफ़र, चलते रहो;
उम्र छोड़े है असर, चलते रहोI
गुम हुईं नादानियाँ, बचपने हैं खो गए;
आगे है अंधा सफ़र, चलते रहोI
है गज़ब की भीड़, रफ़्तार कितनी तेज़ है;
गुमशुदा है हर बशर, चलते रहोI
अपनी-अपनी चाहतें, अपनी-अपनी हसरतें;
किसको किसकी है फ़िकर, चलते रहोI
कोख़ तक से कब्र का, इक सफ़र है ज़िंदगी;
मन्ज़िलों की क्या ख़बर, चलते रहोI