पाश्चात्य संस्कृति का असर
पाश्चात्य संस्कृति का असर
21वींं सदी के भारत से, अवगत मैं तुम्हेंं कराती हूँ।
समाज के आईने की, झूठी शक़्ल दिखाती हूँ।
देखो अपनी सभ्यता की, कैसी बर्बादी आई है,
समाज मे पाश्चात्य संस्कृति की, फैली छाया काली है।
माँ को जिसने MOTHER बनाया, जीते पिता को DEAD किया,
उसने भारतीय संस्कृति के सदाचार को SAD किया।
शून्य की खोज जिस भारत ने की, उसे समझते हो क्यों आधा।
ये वन-तपोवन की भूमि जहाँ, अवतार हुऐ कई ज्यादा।
जहाँ गीता की धारा बहती, और रामायण है गाया जाता।
ये देश है मेरा भारत,जहाँ गूँजे, हम सब भारतीय का नारा।
सौ बार ये धरती पूछती, क्यों भूले तुम अपनी संस्कृति।
कर पीछा ब्रिटिश राज का, क्यों ढो रहे, अपने संस्कारों की अर्थी।
आधुनिकता की होड़ में, डूबा समूचा समाज है।
आज की रामायण में बस, रावण का ही राज है।
जब पूजते हो सीता को, बना कर देवी,
फिर खेल कैसे लेते हो, इनके वस्त्रों से होली?
माता की ममता से दूर हो तुम, और पिता के प्यार से रूठ गऐ।
भूले अपनी संस्कृति सारी, जो अपने घर का परित्याग किऐ।
अब हमारी बारी.........
बदल चुका बहुत कुछ अभी,अब भी बहुत कुछ बदलना है।
अस्त होते भारत के सूर्य को, फिर से उदित करना है।
आओ हमसब मिलकर, ले प्रण पूरे मन से।
अपनी संस्कृति को ऊँचा उठाऐंंगे, करेंगे ऊँचा समपूर्ण जगत में।
अंत की अपनी पंक्ति मैं, बार-बार दोहराना चाहूँ,
जय-भारत, जय-हिंदुस्तान, जय-हिंदमाज का नारा लगाऊँ।।