मज़दूर
मज़दूर
इस मिट्टी के हम बने हुए
इस मिट्टी में ही पलते हैं
तकदीर हमारी रूठी है
पर औरों की हम लिखते हैं
अपने सपने भूल के हम
लोगों के सपने सजाते हैं
जीवन की खेल यह निराली है
दो वक़्त की रोटी ना मिलती है
हम रोते हैं, फिर संभल ते हैं
पर हाथ कभी फैलाते नहीं
मजदूर है हम, मजबूर नहीं
मजदूर है हम, मजबूर नहीं
अपने वजूद की कोई खोज नहीं
इस भीड़ में कोई पहचान नहीं
उन्नति की बुनियाद है हम, पर
अपनी प्रगति नसीब नहीं
धूल मिट्टी से रंगते है रोज
धूप छांव की हमे फिक्र नहीं
दुनिया की गन्दगी साफ करे हम,
अपनी गंदगी की अंथ नहीं
ढूंढते है अधिकार हमारा
जीवन ये पूरा संघर्ष ही सही
मजदूर है हम, मजबूर नहीं
मजदूर है हम, मजबूर नहीं
भुजाएं हमारा शस्त्र है
नव निर्माण की यह सूत्र है
मेहनत ही हमारा धर्म है
नई आशा की परिभाषा है
बनेंगे मिशाल इश भारत की
इरादे हमारा बुलन्द है
"हार जायेंगे जीवन की खेल में"
इतना भी हम कमजोर नहीं
देना भी पड़े बलिदान अगर
जीवन में ना होगा अब्सोश कोई
मजदूर है हम, मजबूर नहीं
मजदूर है हम, मजबूर नहीं।