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Sapana Vijapura

Tragedy

4.0  

Sapana Vijapura

Tragedy

आज कविता नहीं बनेगी

आज कविता नहीं बनेगी

1 min
187


आधा पेट भरी हुई कलेज़े के टुकड़े

सूखी छाती से दूध पीलाने की कोशिश में वो

आज़ कविता नहीं बनेगी.

चुल्हे की राख को फूक के जलाने की कोशिश में

धुंआ से जलते आंखे पोंछती वो

आज़ कविता नहीं बनेगी

पाठशाला से फटे गंदे कपड़े में लपेटा

सूखी ऑंखें सूखा पेट..

माँ ने ढका हुआ फिर भी

जिसके उपर मखियाँ घुमराती है

ऐसा खाना खाने चला

आज़ कविता नही बनेगी..

कविता तो होती है सपनो की दुनिया

यहां कोइ सपना पूरा होनेवाला नहीं

आज़ कोइ कविता नही बनेगी..




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