आज कविता नहीं बनेगी
आज कविता नहीं बनेगी
आधा पेट भरी हुई कलेज़े के टुकड़े
सूखी छाती से दूध पीलाने की कोशिश में वो
आज़ कविता नहीं बनेगी.
चुल्हे की राख को फूक के जलाने की कोशिश में
धुंआ से जलते आंखे पोंछती वो
आज़ कविता नहीं बनेगी
पाठशाला से फटे गंदे कपड़े में लपेटा
सूखी ऑंखें सूखा पेट..
माँ ने ढका हुआ फिर भी
जिसके उपर मखियाँ घुमराती है
ऐसा खाना खाने चला
आज़ कविता नही बनेगी..
कविता तो होती है सपनो की दुनिया
यहां कोइ सपना पूरा होनेवाला नहीं
आज़ कोइ कविता नही बनेगी..