परख
परख
1 min
14.3K
आदमी की परख क्या है
परख प्रवृत्ति की
सही अभिप्राय क्या है ?
शब्दों में अनुभूति - कष्ट है, सज़ा है
क्यों नहीं समझते
क्षणिक उन्माद के वश में हैं
क्यों सब के सब ?
चाहते हैं क्यों उजाड़ना सबको
सिवाय अपने !
अनजान हैं सब आ चुके दूर हैं
बहुत दूर
सही-सही परख से परे
बाहरी परख के तले
सीमित हो गई है सोच
दिलो दिमाग हो गया है संकुचित
बदल गऐ हैं मानक
पहचान की प्रतीक
सभी परम्पराऐं
हो गई हैं अभिभूत
आज के इन्सान की
परख के वशीभूत !