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डरावना सपना

डरावना सपना

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एक दिन माँ को घर पर नहीं पाया, 

उन्हें बस देखने से ही दिल को जो सुकून मिलता था

वह नहीं मिल पाया।

प्यार से माँ का वो खाना खिलाना 

आज बने खाने में वह प्यार का स्वाद मिल ही ना पाया।


एक दिन बहन को घर पर नहीं पाया, 

टीवी रिमोट को लेकर उससे जो झगड़ा होता था 

आज उसके बिना यह टीवी भी मन को ना भाया,

उसकी चोटी खींचना, गाल खींचना कितना परेशान करता था, 

यही सोचकर आँखों में पानी भर आया। 


एक दिन पत्नी को घर पर नहीं पाया, 

छोटी-छोटी बातों को लेकर उसकी वह शिकायतें सुन ना पाया, 

अपनी दुनिया छोड़कर जो मेरी दुनिया में आई है 

उसकी कोई भी ख्वाहिश पूरी ना कर पाया,

यही सोच कर आज मन ही मन पछताया।


एक दिन बेटी को घर पर नहीं पाया, 

चहचाहती चिड़िया सी उसकी मुस्कान देख ना पाया,

पापा पापा कहकर जब गले वो लग जाती थी ,

आज वो सुकून कहीं मिल ही ना पाया।

अचानक जागा नींद से खुद को सपने से बाहर पाया, 

इन सब के बिना अधूरा हूँ मैं

यही सोचकर घबराया। 

औरत के बिना निरर्थक है यह जीवन आज समझ में आया।



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