पैगाम
पैगाम
सुबह की किरणों ने पैगाम भेजा है रात के अंधेरे सायों को,
छोड़ के निकलो इस जहाँ को कि अब सवेरा होने को है |
पैगाम लाई हैं किरणें यहाँ पे कि,
क्यों हो इतनी गहरी नींद में तुम,
ना तेरा भविष्य है ना कोई भूत,
आज ही सवेरा है आज ही उठो तुम,
उठो, जागो और निकलो जहाँ में
क्यों ये सायों के मोह में लगे हो तुम?
पर क्या हर रोज की तरह किरणें वापस लौट जाएंगी ?
क्या आज भी ये खूबसूरत सुबह यूँ ही ढल जाएगी?
क्या आज भी ये सपने सपनो में ही रह जायेंगे?
अभी भी जो सुन रहे हो, सुन लो ये पैगाम को,
देर नहीं हुई अभी भी,
कल की सुबह वापस पैगाम लेकर आएगी|