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Sambit Kumar Pradhan

Drama Romance

1.9  

Sambit Kumar Pradhan

Drama Romance

इतवारी चम्मच

इतवारी चम्मच

2 mins
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ड्राइंग रूम के सोफे पे बैठ, 

अखबार से नज़र चुराते,

मैं उन्हें अब तब देख रहा था।


वैसे रसोई का काम हम

साथ ही किया करते हैं,

पर इतवार के दिन रसोई,

मेरे लिए बंद होती है।


तब खड़े वो प्लेटफ़ॉर्म पे

परात रखे, आटा गूंद रही थीं  

लम्बे, घने, हलके घुंघराले बाल,

जिन्हें वो अक्सर बाँधे रखती हैं,

तब खुले थे।


कुछ घंटा भर हुआ होगा,

वो नहा के निकली थी,

बाल भी सूखे नहीं थे।


यूँ तो घर पर वो,

ट्राउज़र और कमीज़ में होती हैं,

उस रोज़ मगर,

वो ग्रे बोर्डर वाली

पीली साड़ी पहनी थी,

जो मेरी सालगिरह पे पहन,

उन्होंने मुझे तोहफे में दिया था।


नम खुले बालों को कान के पीछे,

दबा कर काम कर रहीं थीं,

पर कमबख्त एक लट बार-बार,

छूट के आँखों के सामने झूल जाती।


आटे सने हाथों की कलाइयों से,

बार-बार नाकाम कोशिश कर रहीं थीं 

चिड़ती आँखे लट को अनदेखा कर,

काम में ध्यान लगाने की कोशिश

करें तो आखिर कैसे करें-

लट कमबख्त तो मानती ही न थी।


संवारते-संवारते आटा थोड़ा गाल पे

और कुछ ज़रा नाक पे जा लगा था,

उस ओर देखने से, 

मैं खुद को रोक नहीं पाता था।


चिड़ते, झल्लाते मेरी ओर देखा-"अरे कुछ करो न,

क्या बैठे मुस्कुराए जा रहे हो !"


अखबार रख अपनी हँसी दबाए,

मैं रसोई में चला गया,

उनके पीछे खड़े हो,

धीरे से उस नटखट लट को,

उनकी घनी, थोड़ी-सी भीगी,

ज़ुल्फों से ला मिलाया।


वो नर्म, नम ज़ुल्फें उँगलियों में,

रेशम की तारों-सी लगती थीं,

जिन से मंद-मंद,

इतवारी सुबह की खुशबू आ रही थी।


उनका ध्यान आटे पे था और मैं,

इसी बहाने उनकी ज़ुल्फों को सहलाते,

अपनी उँगलियों से गुज़ार रहा था।


"अरे क्या कर रहे हो,

देखो मेरा पल्लू भीग रहा है,

ज़रा जूड़ा बना दो न।"


उन्हें छूते ही जैसे मेरा हर काम

खुदबखुद हौले हो गया था,

धीरे से उन्हें रेशा-रेशा बटोरा 

वो इतनी घनी हैं के

मेरी दोनों हथेलियाँ लगीं उन्हें,

साथ थामे रखने में,

जाने वो अकेले कैसे संभालती थीं।


जैसे तैसे मैंने घुमाकर,

एक कुछ टेढ़ा सा जूड़ा बना ही लिया,

जब कुछ मिला नहीं तो,

पास पड़ा एक चम्मच उसमे खोंच दिया।


आटा गूंदा चूका था और परात लिए,

चूल्हे के सामने जब वो गयीं,

तो सामने थाली में खुद को देख,

ज़ोर से हसने लगीं।


अपने हाथ धोये और,

मेरे पीछे से आकर,

अपने गीले हाथ,

मेरी दाढ़ी पे फेरते कहा-


"मेरे इतवारी चम्मच,

अब रोज़ जूड़ा तुम ही बनाना !"


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