मिलती रहे दुआ
मिलती रहे दुआ
जीते जी दर्द दुनिया का तूने अगर लिखा,
मरने के बाद भी तुझे मिलती रहे दुआ।
हर हर्फ़ में ख़याल नया है तुम्हारे गर,
तो बोलती किताब सुनाती नयी सदा।
लिख दर्द को सभी के तू अपने कलाम में
फिर बाद में तू अपने दिल की बात को दिखा।
कब से दिखा रहा है तू दुनिया को झूठ ही,
इक दिन कभी तो होगा तेरा सच से सामना।
बदली है सोच लोगों की पर बदला कुछ नहीं
भूखा अभी भी भूख से नित रोज मर रहा।
भूखा चुराए रोटी तो सब मारते उसे
नेता चुराए तो नहीं मिलती उसे सज़ा।
कहते है रूप ईश का बच्चे ही होते हैं
अपराध क्यों न जाने है बच्चों पे बढ़ रहा।
कुछ भी समझ में तो नहीं आ पाया है "कमल"
क्यों बात बात पर यहाँ झगड़ा है हो रहा।