कन्यादान
कन्यादान
1 min
452
कन्यादान करते समय
लगा जैसे कि
हृदय निकाल कर दे रहे हों
यह कैसा दान?
जिसमें खुशी के साथ है
दर्द का अहसास भी
मिलने का संतोष भी है
और वियोग की पीड़ा भी
सशंकित है मन
कहीं आने वाला समय
नाजों पली बेटी के लिए
अन्धेरी गुफा न बन जाए
कहीं साबित न हो
शेर की मांद
रिश्तों पर हावी न हो जाए
दहेज का दानव
आग जिस पर सिंकती हैं रोटियाँ
जलने का सबब न बन जाए
झटक कर परे मन से
सभी दुश्चिन्ताओं को
अपनी बेटी का हाथ
सौंप दिया पराए हाथों में
इस आशा के साथ कि
आने वाला समय होगा
उनकी दुलारी के लिए
सतरंगी खुशियों से
भरा इन्द्रधनुषी आकाश ।