माता-पिता और घर
माता-पिता और घर
घर बनता है दोनों से
घर जिसकी बुनियाद माँ है
दीवारें पिता है।
उसका फर्श माँ तो
आपदाओं से बचाने वाली
छत पिता है।
आँचल झुलाती छाँव है माँ
एहसासों को रिश्तों में
भरती हुई धूप पिता है।
प्यार की गोदी है माँ
सहारे की अंगुली पिता है।
ज़माने को परखना सिखाती
आँखे है माँ,
ज़माने से जूझने का
हौसला देता
जिगर पिता है।
खड़े होने का सबल देते
पैर है माँ
तो आगे बढ़ते कदम पिता है।
दूध है माँ, रोटी पिता है
लाज है माँ, कपडा पिता है
ताक़त है माँ, हिम्मत पिता है
बिछौना है माँ, चादर पिता है
बचपन है माँ, जवानी पिता है
कहीं पिता माँ है
कहीं माँ ही पिता है
पर घर
दोनों के आधे-आधे संकल्पों का
प्रयासों की चाबियों से
पूर्ण विकसित स्वप्न है।