कविता बनाम बेटी
कविता बनाम बेटी
कविताएँ जो घुट कर रह गईं
रात के अंधेरे में , अजन्मी बेटियों की तरह
देख नहीं पाईं सुबह का सूरज
डूब गईं दर्द के समन्दर में
खो गईं यादों के झरोखो में
अर्पित हैं श्रद्धा सुमन उन सभी के लिए
जो हो गईं असमय काल कलवित
लुप्त हो गईं उन पदचापों के लिए
रहूँ निःशब्द पलों दो पलों के लिए
अपनी उन कविताओं के लिए।
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