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ए ज़िंदगी गले लगा ले

ए ज़िंदगी गले लगा ले

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अकेलेपन के गीत को कोरस में गाते हुए
मैंने अपने अलोनेपन को सलोनेपन में बदल दिया है...
उसी से एक चुटकी नमक निकालकर
कल समंदर में घोल आई थी.
उसकी ऊंची- सी लहर को ज़हर में घोलकर
पी लेने के बाद भी
ऊंचाई से कूदने का साहस
जब नहीं जुटा पाई
तो रेल की पटरी पर होती धड़धड़ाहट से
नब्ज़ को नापते हुए
दिल की धड़कन को रोकने की
तरीकीबें खोजती रही.
और फिर...............
समंदर भर के खारे ग़मों को
चुटकी में पी जाने वाली
घूँट भर मीठे पानी को
गले में फंसाए गाती रही
ए ज़िंदगी गले लगा ले
हमने भी तेरे हर एक गम को
गले से लगाया है...है ना!


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