गोन्दपुरा
गोन्दपुरा
आधा है,अधूरा है,
प्यार का प्याला कोई टूटा है
कोई गुहाभिलेख ज्यों,
गाँव अपना गोन्दपुरा है
बीता है बचपन यहाँ,
तख़्त ही बिछावन जहाँ
जीवन का अग्रलेख,
अपनी जान से भी प्यारा है
मैं कहीं रहूँ,
कुछ भी करूँ,
मेरी मिट्टी मुझे बुलाती है
सुख -दुःख के हर प्रसंग में
याद उसी की आती है
पूस हो या कि अगहन,
माघ हो या हो कि फाल्गुन
बीते हुए हर मास की
खुशबू उससे होकर आती है
मेरा गाँव तो मेरा गौरव है,
अद्भुत इसका सौरभ है
हर गलियों से परिचित,
गाँव नहीं मेरा स्वानुभव है
मेरी दुर्वासना को भी
जिसने जी भर दुलार किया
मेरे दुराचारों को रोकता,
मुझसे हठी कोई हठ है
गूगल के नक़्शे पर इसे
खोजता और खंगालता हूँ
बिंधे हुए किसी बटोही सा
उस बिंदु पर थम जाता हूँ
पीपल, जोहड़, बगुले ,
चैती, बरगद और बथान
कहो कब उस कुटुंब की
पंचायत को भूल पाता हूँ
सफलता के नशे का
कुहरा ऐसा छाया मुझपर
मैं खो गया कुंडलाकार
किसी कौतुक में आकर
मगर हर धुंध को आखिर
एक दिन ढल जाना है,
कानों के पास गाँव
किलकारी करता है मचलकर
चूसे आमों की गुठलियां,
गुठलियों में आए कोंपल
धान के खेतों में होती
गिट-पिट और धमा-चौकड़
होली पर चुपके से
किसी घर का कुछ भी रख आना
कंठ तक खाते जिनमें
कहाँ दिखते आज वे ज्योनार
गाँव अपना गोन्दपुरा है ,
झरने का पानी गुनगुना है
गुपचुप आ पैठता है
परदेश में बच्चा कोई हठीला है
आँखें मूँदता हूँ और
भावातुर घर घर घूम आता हूँ
उर भीतर कब से
उठाता न जाने कैसा ये बखेड़ा है
आधा है,अधूरा है,
प्यार का प्याला कोई टूटा है
कोई गुहाभिलेख ज्यों,
गाँव अपना गोन्दपुरा है