जज़्बा-ऐ-दिल
जज़्बा-ऐ-दिल
जज़्बा-ऐ-दिल का हाल बयाँ तेरे साथ हो कैसे?
जो तू रूबरू ही नहीं तो मोहब्बत का आगाज़ हो कैसे
यूँही दिल की दिल में रह जायेगी अब क्या कहिये
जो तू न दे तवज़्ज़ो तो फिर तुझसे बात हो कैसे
जज़्बा-ऐ-दिल का हाल बयां तेरे साथ हो कैसे?
है मोहब्बत हमें तुझसे बस इतना ही तो बतलाना है
जो तू सब सुन के भी ना समझे तो इकरार हो कैसे
जो करती हूँ तुझसे मोहब्बत तो इतना भी क्यों इतराते हो
देखते रहते हो छुप-छुप के मुझे, सामने नज़रें चुराते हो
जो तुम मुझे खुल के ना करो स्वीकार तो इज़हार हो कैसे
जो रहो तुम मगरूर और बेहाल तो प्यार हो कैसे
जज़्बा-ऐ-दिल का हाल बयां तेरे साथ हो कैसे?
जो तू रूबरू ही नहीं तो मोहब्बत का आगाज़ हो कैसे