मेरा प्रिय भोजन
मेरा प्रिय भोजन
मेरा प्रिय भोजन दाल बाटी चूरमा
बचपन मे एक बार में बिना
न्यौते पर चला गया था जीमने
कार्ड में न्यौता था एक,
में बिना बताये चला गया जीमने के खेत
पापा आ गये थे अचानक
चूरमे का थाल लिए सामने
उस वक्त, पापा मुस्कुराकर
लड्डू रखकर चल दिये
घर पर आकर बांधा,
फिर डंडे से लगे थे लड्डू निकालने
एक तो ऊपर से मार इतनी जबर्दस्त
रोने भी नही देते थे लग गये मुझे दस्त
अब जाना कभी और किसी के
यहाँ बिना न्यौते के
ये बोल बोल कर लगे थे
गाल पर जोर जोर से थप्पड़
मारने तब से मैंने तो बिना कार्ड के
जाने से तौबा तौबा कर ली है
दाल, बाटी, चूरमे की महक को
सीने में दफन कर ली है
अब नहीं जाता हूं, उस ठौर
चाहे दाल, बाटी, चूरमा बना हो उस औऱ
अब समझने लगा हूं,
जाता हूं वहाँ जहाँ प्रेम से बुलाते जीमने।