मैं जानता...
मैं जानता...
मैं जानता,
दूर जा चुकी हो तुम
मुझे भुला चुकी हो तुम,
पर मुझमें,
ऐसे बस चुकी हो तुम
चाहता तो मैं भी दूर हो जाता
पर मैं बन चुकी हो तुम
नहीं किया कोई और नशा
निशा, तेरा नशा ही काफी है,
तुझसे निकलूं तो कुछ ओर सोचूं
मुझको तो ये ही नहीं पता
कि मेरी ज़िन्दगी अभी बाकी है,
साँसे वहीं ठहरी हैं,
जब से दूर हुई हो तुम
अभी भी वही धड़कन जारी है
जो तुम्हारे साथ धड़की थी
मुझको तो ये ही नहीं पता
कि मेरी ज़िन्दगी में और साँसे अभी बाकी है,
मैं जानता,
मेरी नहीं अब तुम, सिर्फ जिस्म तुम्हारा
पहली मुलाकात में एक हुई थी साँसे
जो मुझमें अब भी बाकी है,
निशा जो तुम साथ लायी थी
नहीं आया तब से कोई, मेरी ज़िन्दगी में सवेरा
वो निशा अब भी बाकी है
मैं जानता
ये ख्वाब, तुमको पाने का, किसी कोने में
दिल के,अब भी बाकी है,
सपना, कल्पना... मेरा विश्वास
क्या है ये
मेरी ज़िन्दगी में तेरा इंतजार अब भी बाकी है ,
मैं जानता ,
आँखे तेरी भी नम होती होंगी,
जब सामना मेरी यादों का तेरी ज़िन्दगी में होता होगा ,
मेरी साँसे ठहरी हैं अभी तक,
यूँ है, क्योंकि, तेरी दुआ में
मेरी सलामती का जिक्र होता होगा
मैं जानता...!