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कान्हा का अनमोल अहसास

कान्हा का अनमोल अहसास

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आज फिर दर पर खड़े हो।
क्या कोई दुआ की सौगात हैं,
या दिल आज फिर से आघात हैं।
ये जो लब्ज़ों पर हँसी हैं,
पर हाँथो पर नमी हैं,
ज़रूर गमगीन कोई बात हैं।
मालूम हैं हमे दे आये हो ख़ुशी अपनी,
उन बच्चों को जो रास्ते के उस पार हैं।
जेब करदी हैं ख़ाली उनकी मुस्कान पर,
जले कैसे आज रात चूल्हा,
इसमें फिर मन उदास हैं।
अब जब चले ही आये हो हमारे दर,
पूरी कर देते है दुआ तुम्हारी,
जिसकी तुम्हें आज फिर से आस हैं।
मंदिर से उठा लो ये फल,
तुझमें ही तो मेरा वास हैं।
ये सिक्कों भरी थाली आज फिर,
तुम्हारे लिए भर गयी।
उठा लो और मिटा लो भुक,
जैसे तुम्हारे लिय वो भूखे बच्चे खास हैं।
आज की दुनिया में रोज मंदिर में,
तुम्हारा यु रोज मुझ मूरत से मिलना,
बस यही तो कान्हा का अनमोल अहसास हैं।।

© कविता शर्मा


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