आफ़ताब सा निकला न करो
आफ़ताब सा निकला न करो
आफ़ताब सा निकला न करो आप यूँ हर सुबह,
हमको झांक कर देखा न करो आप यूँ हर सुबह।
मोम सा पाया दिल हमने पिघल जाएंगे पलभर में,
ख्वाब में आकर सिमटा न करो आप यूँ हर सुबह।
इस जहाँ की वादियों में सुनहरी सी झिल-मिलाएगी,
ओस जैसे फूल पे पिघला न करो आप यूँ हर सुबह।
जब निकलते हो घर से,चले जाते हो तिरछा देखकर,
बेवजह ख्वाहिशें कुचला न करो आप यूँ हर सुबह।
मौजूदगी आप के दिल में रहती है शाम-ओ-सुबह,
ऐसे "खुशी" से अनदेखा न करो आप यूँ हर सुबह।