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तलाश

तलाश

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तलाशता है हर शख़्स,

हर घड़ी खुद को

आँखों से रिसते

आँसुओं की वजह को।


कभी अपनी मुस्कुराहटों के पीछे

छुपे दर्द को,

कभी झूठे सच्चे रिश्तों की

गहराई को मापता है।


टूटे दिल की मरम्मत में,

हर दिन कोई कील नयी गाड़ता है।

रात सोते वक्त सपनों का सहारा भी लेना

उसे कतई मंजूर नहीं।


करवटों से रिश्ता

वैसे भी कुछ पुराना है।


छोटी-छोटी दिनचर्या की उलझनों में

खुद को बर्बाद किये जा रहें।

तलाश में खुद अपनी ही

हम बेजार हुए जा रहें।


दुनिया की भीड़ का हिस्सा बनना

कतई हमें मंजूर न था,

पर अपनी छाप छोड़ने का

इरादा भी कुछ पक्का न था।


जो साथ है वो ही मुक़म्मल है,

जो मिलने की गुंजाइश नहीं

वो तलाश है।


यकीन मानिये

दिन रात एक कर के

भी दूसरों को तलाशना,

ज़रा आसान रहा।


खुद को तलाशना तो

हर हाल ला हासिल ही रहा।

तलाशना है खुद को तो

अपने से जुड़े रिश्तों में

खुद को तलाशिये।


खुद की गति को

थोड़ा विराम दीजिये

और आँखें बंद कर के

ये सोचिये,


जहाँ आज आप खड़े हैं

वो किसी की मंजिल और ख्वाब

दोनों हो सकते हैं।


खुश दिखने और

वाकई में खुश होने का फर्क

जिस दिन मिट जायेगा,

आपकी तलाश खुद-ब-खुद

मुक़म्मल हो जाएगी।।


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