वैसी मोहब्बत
वैसी मोहब्बत
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जैसी यादों को होती है
भूले बिसरे कल से
समझौते को होती है
भरोसे के बल से
सागर मचल उठता है
जैसे पूनम के चाँद को देख
वैसी मोहब्बत !
बहती पवन के झोंके
बालों को जैसे चूम लेते हैं
हाथों में हाथ हों, तो आँखें मूँद
सारा जहान् घूम लेते हैं
बातें सारी हो जाएं
जैसे इशारों-इशारों में
वैसी मोहब्बत !
जैसी वक़्त को होती है
गुज़र जाने से
तस्वीरों को होती है
किसी अफ़साने से
गुस्ताखियाँ ख़ुद-ब-ख़ुद होकर
जैसे मनाये जाने के इंतज़ार में हों
वैसी मोहब्बत !
जैसी मेहँदी को होती है
पीले हाथों से
और रिश्तों को होती है
चन्द मुलाक़ातों से
संगीत सुनाई देते ही
जैसे गुनगुनाना रोक नहीं पाता मैं
वैसी मोहब्बत !