प्रतीक्षा
प्रतीक्षा
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मैंने रखे थे
कुछ ख्वाब
इन नैनों में
जिसमें बसे थे
तुम और मैं
मैं जब जब
तुम्हे यहाँ लाई
तुम जुल्फों से उलझ जाते
गालों से लिपट जाते
अधरों में बहक जाते।
ये ख्वाब
आज भी तनहा हैं
बस गिन रहे हैं
अंतिम साँसेंं
तुम्हारे इंंतेज़ार में।
मैंने बसाया था तुम्हेंं
इस ह्रदय में
कितनी ही बार
तुम यहाँ आये
पर वक्षों की
परिक्रमा कर ही
लौट गऐ।
इस गर्भ में
जब आया
हमारा अंश
तुम उस तक भी
कहाँ पहुँच पाये
कहाँ सुन पाये
हमारी धड़कन
बस खेलते रहे खेल
सृजन का।
क्या तुम निकल पाओगे कभी
इस देह के तिलिस्म से
और पहुँच पाओगे मुझ तक
मैं आज भी
तुम्हारी प्रतीक्षा में हूँ