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Vivek Shaw

Abstract

5.0  

Vivek Shaw

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प्रणय

प्रणय

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मेरे हृदय में आती भावना 

इसमें होता कुछ प्रलंफन

फिर मैंने उतारा उसे

पेंसिल की नोक पर

विकल होती है मन


प्रवाहित होती है निर्मल स्मरण 

तब मुखरित होती है

प्रणय मन से कविता मसृण

सोचा इस वृत्तान्त को

अभिव्यक्त कर डालू


अंकुरित होती भाव में,

मंजुल छवि गढ़ डालू 

मधुर याचना सी मनमीत

उभर गए इन पन्नो पर


स्वपन जगते मधुर अनुराग,

अवचेतन मन के सुवास दर।

व्याकुल विह्वल मेरे नैन

तीव्र आकुल का संत्रास।


हर पल मथ रहा मैं

रोम रोम से सृजित

शब्द और अनुभवों को भर सांस।

मुक्तक में जिक्र उसका

यह नज्म उसकी चंचलता


छंद उसके नाम 

उसके स्वांग अनुरूप

मेरे भावधार की एकाग्रता

जिसमे शब्द सम्हलती बिखरती


उसकी भावना निरंतर सम्हालकर

उसकी प्रतीक्षा करता,

करता उस अमूल्य प्रणय को

अपने हृदय में संचित।


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