न जाने क्यूँ
न जाने क्यूँ
न जाने पास होकर भी तुम
क्यूँ दूर नज़र आते हो
इस अनकही चुप्पी की दीवार को तुम
क्यूँ बुनते चले जाते हो।
मोहब्बत ने हमें साथी बनाया
क्यूँ ये भूल जाते हो
ये अहम तो बर्फ़ की दीवार सा है
क्यूँ ये समझ नहीं पाते हो।
एक आलिंगन से पिघल सकता है
क्यूँ ये जानकर भी अंजान बन जाते हो
नाज़ूक डोर से जो रिश्ता बांधे है हमें
क्यूँ उसका खिंचाव दिल से बिसराते हो।
हर हाल में संग रहेंगे हम
क्यूँ ये चाहकर भी कह नहीं पाते हो
न जाने पास होकर भी तुम
क्यूँ दूर नज़र आते हो।।