शहंशाह से गिद्ध तक
शहंशाह से गिद्ध तक
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पेरिस के सबअर्ब के किसी गाँव में जा बसे
कलाकार ने नहीं सोचा होगा चलती साँसों के वक़्त
कि उसकी अपने भाई को लिखी निजी चिट्ठियाँ
पढ़ रहा होगा उसका कोई मुरीद सवा सौ साल बाद
बैठकर बीकानेर में
हो रहे होंगे उसके अनुवाद
हो रही होगी उन पर चर्चा
हज़ारों मील की दूरी पर बैठे दो प्रशंसकों के बीच
किसी एक ही समय में
ख़ासकर जब गरीबी रही हो जिम्मेवार
उस महान की ख़ुदकुशी की
जिसकी बनाई तस्वीरें सौ साल बाद रखती हों माद्दा
खनखनाहट भरी दौलत के हिसाब से
उसे दुनिया के सबसे अमीर आदमी बनाने का
उसके यूँ असमय जाने पर अफ़सोस करती दुनिया
साथ ही नज़रअंदाज़ करती हुई
उसके से दूसरे वर्तमान
आज को हर कल से सस्ता आँकने की आदत पाले हम
हम जिनकी दूर की नज़र बड़ी कमज़ोर है
दूर भविष्य देखने की……
इस नज़र का कहीं चश्मा भी तो नहीं बनता
एक तरफ कलाकृतियाँ सहेज
धनकुबेर तब्दील होते गिद्धों में
करते प्रतीक्षा इस जहाँ से कूच करने की
उन कलाकृतियों के कलाकारों की
जिससे कि वो कमा सकें उनसे कई गुना
सैकड़ों गुना वसूल कर सकें लगाईं गई लागत का
इन्वेस्टमेंट के फंडे सीखकर
एक मनहूस पल के बाद
जो उनके लिऐ
समय द्वारा दिया गया बेशक़ीमती उपहार होगा
जाने सच में काटे गऐ थे हाथ
सफ़ेद संगमरमर में लाल-हरे जड़कर
नक्काशी पर दिन-रात आँखें फोड़कर
दुनिया के लिऐ अचरज बनाने वालों के
या
सिर्फ रोमांचित करने के लिऐ गढ़ी गई कोई कहानी
पर ये नऐ शाहजहाँ करते हैं इंतेज़ार
पूरे धैर्य के साथ उन हाथ वालों की मौत का
इन चार सौ सालों में
हाथ कटने के बेसब्र फैसले से
मौत के इंतेज़ार तक का धीरज सीखे हैं हम
देखिये कितना सभ्य हुऐ हैं