लक्ष्य भेद कर रहूँगा
लक्ष्य भेद कर रहूँगा
तीर हूँ अर्जुन का मैं भी
तुम को माना कृष्ण है,
भेद क्या, अभेद्य क्या है
सर्वस्व जब तुम हो मेरे।
"एक" लक्ष्य था, मगर
हारे हैं असंख्य शूरवीर,
मुझको दृढ़ निश्चय जीत का
हाथ मेरा जो थामे यदुवीर।
जिस हौसले से हूँ खड़ा
मेरे अंदाज़ बड़े ही अनुपम,
मुझको भी हैरानगी हो रही
इतनी शक्ति मुझमें समाई कैसे?
कुछ भी नहीं अभेद्य मुझसे
कितना भी कठिन लक्ष्य कहो,
मैं पार्थ स्वरूप में खड़ा यहाँ
हैं संग मेरे सखा कृष्ण, अहो।।