सपने
सपने
सपने होते हैं परछाई से , जितने कदम चलो उतने बढते जाते हैं कभी खुशहाली ,तो कभी जंग वो बन जाते| छोटे से मन में वो विशाल घर बनाते है जिंदगी कि हकीकत में वो युद्ध छेड जाते हैं सपने हैं परछाई से, जितने कदम चलो उतने बढते जाते हैं नरमी सा एहसास दिल में भर देते हैं। कभी हकीकत बनके , सामने आ जाते हैं कभी किसी से नही करते हैं वो भेदभाव चाहें गरीब हो या अमीर सबकी आंखो में आते हैं वो ,सपने हैं परछाई से,जितने कदम चलो उतने बढते जाते है ऊंचाई इतनी कि,पल में चांद और सूरज को छुले गहराई इतनी कि , समुंदर कि सतह में पल न लगे|गरीब को पल में अमीर वो बनाए । महबूबा को पल में पिया से मिलाए । सपने हैं परछाई से जितने कदम चलो उतने बढते जाते हैं ।