धुंधली यादें
धुंधली यादें
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बचपन की बड़ी याद आती है,
जैसे परत परत कोई किताब खुलती है।
वो बीता वक़्त लौटता नहीं,
पर मन कहे फिर जिए वैसे ही।
उसे कहाँ पता की अब कंधे मज़बूत तो हैं,
लेकिन जिम्दारियाँ भी तो खूब हैं।
फिसलती रेत को कौन पकड़ पाया,
समय ने सबको अपनी उंगलियों पर नचाया।