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चली जाती हूँअपने श‍हर

चली जाती हूँअपने श‍हर

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चली जाती हूँ अपने श‍हर,

हर उस उदास शाम को,

जब ऊब जाती हूँ दिखावे के प्यार,

व अपनेपन भरे इन रिश्तों से !


ढलते सूरज संग चली जाती हूँ,

अपने शहर जहाँ प्यार की नदियाँ बहती है,

अमन के पुष्प खिलते हैं,वो शहर मेरा है

जहां आँसू, गम और दर्दकी जगह नहीं,

हर तरफ बस निश्छल, निर्विकार प्रेम है ।


दूर तक बस प्रे्‍म निस्वार्थ प्रेम !

जिसकी आगोश में छोड़ आती हूँ,

अपने सारे गम दे आती हूँ

अपने सारे दर्द और महसूस कर

पाती हूँ खुद को, उस प्रेममय दुनिया को।


जी उठती हूँ फिर से

भूल कर अपने सारे आँसू !

चली जाती हूँ उस शहर

हर उदास शाम को

दूर करने अपनी उदासी

और समेट लेती हूं अपने आँचल में ।


ढेर सारा प्यार कर लेती हूँ

खुद को फिर से प्रेम में तर!

चली जाती हूँ दिखावे के प्यार व

अपनेपन भरे इन रिश्तों से दूर

अपने शहर।


मन का सारा बोझ लिए,

दिल के सारे भार लिए,

उस निस्वार्थ प्रेम को,

महसूस करने,

खुद को प्रेममय करने,

चली जाती हूँ अपने शहर !


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