ज़िन्दगी
ज़िन्दगी
ज़िन्दगी के असल मायने,
हमने कहाँ समझे हैं!
खुशियों को हमने जगह,
कहाँ दी है!
अपने जज़्बातों से,
दूसरों के जज़्बातों को,
आँका है!
रिश्तों की उलझी हुई डोर को,
और उलझाया है!
एक बात के सौ मतलब,
निकालें हैं!
सबसे खूबसूरत एहसास,
प्यार को सोच के बोझ तले,
दबा दिया है!
ख्वाहिशों का,
एक पूरा शहर लेकर,
हम घूम रहें हैं!
ज़िम्मेदारियों से हम,
भागते रहें हैं!
और फिर हम कहते हैं कि,
ज़िन्दगी में कुछ अच्छा नहीं है!
गौर से अगर हम समझते,
तो देख पाते कि,
जब ज़िन्दगी हमें,
बहुत कुछ अच्छा देती है,
तब हम उसकी कद्र,
नहीं करते,
उसमें मीन-मेख,
निकालते रहते हैं,
और जब नहीं देती तो,
रोते रहते हैं।