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फिर शहर तन्हा हो जाएगा

फिर शहर तन्हा हो जाएगा

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शहर में आजकल हवा की महक पुरानी है

उनके वापस आने का ये संकेत ही काफ़ी है।

चलो अच्छा हुआ वो लौट आए

इस शहर की सांसों का चलते रहना भी ज़रूरी है।

देखने को उन्हें आज शाम गली सजेगी

शाम की नमाज़, ना जाने कितनों की दुआ क़बूल करेगी।

मस्जिद में अज़ान, मंदिर में आरती

आज फिर एक साथ होगी

उन दोनों की ईद और दिवाली ना जाने कितने सालों बाद होगी।

पैरों की पायल, उसके कानों में खनकेगी

दीदार को आज भी ना जाने कितने पहरेदारों से बचकर वो मिलेगी।

संगम घाट पर उनका भी संगम होगा

आफ़ताब और महताब का क्या अनोखा मिलन होगा।

सब शिकवे, गिले बह जाएँगे नदी की धारा में

वो फिर से एक हो जाएँगे, आगोश की तरुनाई में।

"वो हम यहाँ मिला करते थे सालों पहले

वो गए थे तुम शहर बिना बता के

वो सब क्या याद है तुम्हें?

क्या पढ़ा करते थे तुम वो सब ख़त जो मैं

भेजा करती थी माँ से छुपते छुपाते "

ऐसे भी कुछ सवाल होंगे

इन सवालों का जवाब ना होना , आहत कर देगा

वो फिर खड़ी देखती रह जाएगी

वो फिर अजनबी हो जाएगा...

वो फिर पुकारती रह जाएगी

वो फिर बिन बताए चला जाएगा...

फिर शहर तन्हा हो जाएगा ।


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