वो सफ़र
वो सफ़र
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यकीन नहीं होता की,
वो सफ़र ख़त्म हो गया ,
मानो जैसे कल की ही बात थी,
थी दुनिया अपनी छोटी,
हँसी से गूँजती हर रात थी।
जो चाहते थे, वो मिल तो गया,
पर जो खोया, ये उसकी बात थी।
अगर दो अश्क बहें,
तो बह जाएँ, उनके नाम,
रिश्ता जो था नाम से अजनबी,
पर जिसमें खून सी औकात थी।
मानो जैसे कल की ही बात थी।