उड़ान
उड़ान
रास्ते पर चली जा रही है
दिन बीतते गए, शाम ढलती गई
बहुत लोग मिले और चले गए
कोई न मिला साथी मुझे
फिर एक छोटा सा पंछी
बना मेरा साथी पथ में
बहुत बातें की थी हमने
सुख-दुख सब बाँटे थे हमने
एक गुत्थी उलझी मन में
सोचा सुलझा लूं उसे
पूछ लिया उससे एक सवाल
कैसे भरते हो ऊँची उड़ान?
बहुत ख़ूब जवाब दिया उसने
बदल दी मेरी जिंदगी जिसने
कहा फिर उसने मुझसे
ऊँची उड़ान क्या है
नहीं हो तुम जानते
बहता पानी कभी नहीं सड़ता
पंखों से कोई ऊँची उड़ान
नहीं भरता
बस हौसला बुलंद हो
सामने मंज़िल हो
दो एक शुरुआत
तो बन जाए हर बात