मुझे सताता है
मुझे सताता है
ताज सा तराशा तेरा हुश्न लुभाता है,
दूर से दीदार का दर्द मुझे सताता है।
तौबा उसकी मखमली आवाज़ का जादू,
कानों में रस घोलता मुझको रिझाता है।
जाम जब से चखा है नैंनों की सुराही से,
सपने ये ख़्वाबगाह मीठे से दिखाता है।
मंदिर की घंटीयों सी आवाज़ है उसकी,
इश्क के दिल नग्में तानों में सुनाता है।
चूड़ियों की छन से तिश्नगी बढ़ती जाए,
नूपूर की सरगम को मेहबूब दोहराता है।
शाम की तन्हाई में जब यार याद आए,
कतरें गमों के दिल आँखों से बहाता है।
कहाँ दिल तुझको ढूँढे कहाँ मेरा खुदा तू,
आवाज़ मुझे देना आशिक ये बुलाता है।
ख़्वाब मैं ये देखूँ तेरी आगोश में लरज़ते,
ज़र्रा-ज़र्रा ये जश्न मिलन का मनाता है।
रूह मेरी प्यासी पाने को मचल जाए,
भावनाएँ बेकल मन उनसे छिपाता है।