सारा द्रख्त ही तेरा है
सारा द्रख्त ही तेरा है
हर गीत में तेरा बसेरा है
हर नज़्म में तू ही रहती है
मैं ख़ुद तुझ से ही सुनता हूँ
तू ख़ुद ही तुझ से कहती है
सब कुछ तुझ को भाता है
फिर भी इक ना-ऐतबारी है
ना तेरी है ना मेरी है
हर एक ग़ज़ल हमारी है
पर तूने कब माना अपना
तू फ़कत इन्हे बस सुनती है
जो सारा द्रख्त ही तेरा है
तू उस के फूल ही चुनती है