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Divya Mathur

Fantasy

5.0  

Divya Mathur

Fantasy

मन की आवाज़

मन की आवाज़

1 min
322


तोड़ सकती दिल किसी का ये हुनर आता नहीं था

बेवफाई से मेरा कोई नाता नहीं था।

दिल मेरा साफगोई से भरा था,

दिल दुखाना मुझे भाता नहीं था।


चंद लोगों से मेरी दुनिया बनी थी,

महफिलों से मेरा वास्ता नहीं था।

दिन कटे थे चैनो सुखन से,

मुश्किलों से नाता नहीं था।


दुनिया भरी थी छल कपट से,

आदमियत का मगर खाता नहीं था।

मिटाना जो चाहा नफरतों को,

अमन का गीत कोई गाता नहीं था।


पैग़ाम था मेरा चाहतों का,

और कुछ चाहा नहीं था।

मयस्सर नहीं था सुख का दरिया,

दुख़ का सागर लहराता नहीं था।


सबको प्यारा था संसार अपना,

दूसरे से रिश्ता कोई निभाता नहीं था।

मुस्कुराने की वजह सब ढूंढते थे,

गम भुलाया जा ता नहीं था।


बेबसी ही वजह थी दुश्मनी की,

वरना फसाद कोई चाहता नहीं था।


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