आज कलम उठी मेरी
आज कलम उठी मेरी
आज कलम उठी मेरी उस दर्द की याद में,
नम हैं जो आँखें आज भी उन आँखों की फरियाद में...
साल पुरानी बात ने इंसाफ को आज पुकारा है...
कलयुग के राक्षसों ने, क्यों एक बेटी को मारा है...
आवाज़ आज भी उस बेटी की अपनी माँ से कहती है...
माँ मत लड़ आज की तो हर बेटी ये सहती है...
वो तो एक नाबालिग था, बच्चा था मासूम था...
शैतानी ही थी उसकी, किया जो मेरा खून था...
धरती की बेटी इस युग में, दर्द से चिल्लाई है...
और दर्द देने वाले को दी मशीन सिलाई है...
क्यों प्रदर्शन करते हो, क्यों लड़ते हो मेरी खातिर...
मुझे पता है, तुम्हें पता है, वो नाबालिग है कातिल...
रेप करने वालों को, जो यूँही छोड़ोगे..
इस धरती की सड़कों पर तुम बेटियां नहीं पाओगे..
बिना दया के दिया था जिसने उस लड़की को मार...
आज दिए जाते है उसको दस हज़ार...
आई है आज तो हर लड़की से आवाज़...
होने दो कभी तो हमें बेटी होने पर नाज़...
हर लड़की की आज भी यही है सबसे विनती...
इन दरिंदे राक्षसों की बढ़ने मत दो गिनती।