आईना
आईना
इतनी तारीफ़ भी न करो किसी की
की लगे आईना झूठ बोल रहा है
न जाने कितनी बार हम आईने के सामने से गुजरते हैं
और दिल की जुबां बखूबी पढ़ लेते हैं ...
आईना बहलाता नहीं गर
ज़मीर के उतरते चढ़ते उफान
असली तस्सवुर ना बयां करते हों
आईना, ऐ दोस्त कभी झूठ नहीं बोलता
शख्सियत रखता है हक़ीकत बयां करने की...
ज़रा थोड़ा करीब जाके तो देखो
क्या चेहरों की शिकन , माथे की सलवटें
सवाल नहीं करती, कि ऐ इंसान
तू जो देखना चाहता है, वह वैसा नहीं है
तेरे बरसों का लेखा -जोखा
तो तेरे चेहरे पर लिखा है...
दिल को संभालो और करीब आओ
धड़कने कुछ और बयां करती हैं
चुपके से कान लगाओ,
तुम जो हो, तेरा वजूद असल में वहीं है
तू जैसा है, तू वैसा ही है, और कुछ नहीं
बस यही हक़ीकत बयां करता हूँ, क्योंकि
आईना कभी झूठ नहीं बोलता है.....