कुछ शब्द उधार दे दो मुझे
कुछ शब्द उधार दे दो मुझे
यह तो तुम भी जानते हो, और मैं भी कि,
हमारे बीच का ये जो रिश्ता है, जिसका कोई नाम नहीं,
हमारे अहंकारों और हमारे गुस्से के बिना अधूरा ही है,
हमारे बीच गुज़रे प्रेम के पलों को,
गुनगुनाने के लिए तो अनंत शब्द है मेरे पास,
पर हमारे बीच घटीत हुए, अहं के टकराहट को याद कर,
शब्दविहीन हो जाता हूँ मैं,
उन्हे भी तो लिखना चाहिए ना,
उन टकराहट के पलों के बिना तो हमारा रिश्ता ही अधूरा है,
पर शब्द नहीं है मेरे पास,
कुछ शब्द तुमसे उधार माँगता हूँ,
जल्दी वापस कर दूँगा,
सोचता हूँ, काश! उन टकराहट के पलों में हार मान लेता मैं ही,
मगर मैं जनता हूँ,
तुम तब भी गुस्सा होती,
ये सोच कर की मैं मुद्दे को टाल रहा हूँ,
और ज़्यादा व्यथित होती,
हर परिस्थिति के लिए कितने सारे शब्द होते थे तुम्हारे पास,
प्रेम के मधुर पलों के लिए भी, और लड़ने के लिए भी,
अब तुम्हे निशब्द देख कर हज़ार मौत मरता हूँ मैं,
मरता हूँ, और मरकर मेरी रूह भटकती है वीराने में,
नीड वीराने में, जहाँ दूर-दूर तक कोई नहीं होता है,
उन अंधेरे सन्नाटे को अपनी पूरी ताक़त से चीरता हुआ,
चिल्लाता हूँ मैं,
"कोई मुझे कुछ शब्द दे दो"
ताकि लाकर कुछ शब्द,
तुम्हारी निशब्दता को तोड़ सकूँ,
मगर अभी भी तुम ही जीतती हो,
नहीं मिलता कहीं से कोई शब्द मुझे,
और तुम्हारी ये चिर निशब्दता बनी हुई है अभी भी,
और तुम्हारी ख़ामोशी,
बार-बार मुझे मरने को मज़बूर करती है,
देखो, जानता हूँ,
कुछ शब्द तो अवश्य ही अब भी रखे होंगे तुम्हारे पास,
इतने सारे शब्द थे तुम्हारे पास,
यों अचानक गायब कैसे हो गये,
ढुंढ़ों ना कुछ शब्द अपने अंदर,
और मुझे उधार दे दो,
यकीन करो, जल्दी ही लौटा दूँगा|