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Sweta Parekh

Classics

4.2  

Sweta Parekh

Classics

ऐ हमसफ़र

ऐ हमसफ़र

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1.1K


ज़िंदगी के इस सफर में आओ में और तुम 'हम' बन कर चले, 

सफर अभी बाकी है ऐ हमसफ़र चलो मुस्कुराते चले!


कभी खुशियों की बारिश होगी और कभी गम के काले बादल,

आओ तब मिलके खुशिया और बढ़ाये ओर गम बाट के मिटाये,

सफर अभी बाकी है ऐ हमसफ़र चलो हर पल मुस्कुराते बिताये!


कभी जब में खफा हु तो तुम सॉरी बोल कर मनावो,

ओर कभी तुम्हारी नाराजगी में मुस्कुराके पिगलाउ,

आओ इस सफर में जगड़े के बाद के प्यार को बरकार करे!

सफर अभी बाकी है ऐ हमसफ़र चलो मुस्कुराते चले!


कभी जब रिश्ते धागो में उलझे तो हम मिले करे इन्हे सुलझाए,

ओर कभी जब आपसी मतभेद में ये 'हम', में और तुम में बट जाये 

तब आओ इसे सम्मान से मनाये!

सफर अभी बाकी है ऐ हमसफ़र चलो ऐसी सारी विषमता मिटाये!


कभी जब में थक जाऊ तो तुम घर सवार दो,

ओर कभी जब तुम थको तो में सहारा बन जाऊ,

आओ इस सफर में हमसफर बन आगे बढ़ चले!

सफर अभी बाकी है ऐ हमसफ़र चलो मुस्कुराते चले!


कभी जब सोच बदलेगी तो पसंद भी अलग होगी,

पर उस बदलती सोच के साथ प्यार को ना बदले,

प्यार की हर परिभाषा को समझे,

सफर अभी बाकी है ऐ हमसफ़र चलो मुस्कुराते चले !


कभी जब समय के साथ जिम्मेदारी

बढ़ेगी तो साथ बिताने के पल भी कम होंगे,

पर उस बीतते पलो में आओ हर पल यादगार बनाये,

हर पल खुशियों से सजाये,

आओ इस सफर में हर पल मुस्कुराते बिताये !


कभी जब पीढ़िया बदलेगी तो कई और नयी सिख मिलेगी,

पर उस बदलती पीढ़ियों के साथ आओ ये प्रीत और बढ़ाये,

हर रिश्ते की उम्र बढ़ाये, ओर कहे अपनी पीढ़ियों से के


सफर अभी बाकी है ऐ हमसफ़र चलो मुस्कुराते चले !

ज़िंदगी के इस सफर में आओ में और तुम 'हम' बन कर चले।


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