कुछ वक़्त से
कुछ वक़्त से
कुछ वक़्त से मैंने
कुछ नया नहीं लिखा है,
ज़िन्दगी व्यस्त है बहुत
मन रहता परेशान है,
और कलम मेरी शांत है ?
किताबों से क्यूँ मेरा
बढ़ गया इतना फासला है ?
हर पल हूँ किसी महफ़िल में मैं
फिर भी, क्यों ये दिल अकेला है ?
वक़्त ने चलाया ये कैसा सिलसिला है ?
जो कागज़ पुकारे मुझे, तो
कलम इंकार कर देती है,
कलम को मनाऊं कभी तो
समय बाधा बन आगे जाती है,
ये किसका किससे कैसा गिला है ?
कुछ वक़्त से मैंने
कुछ नया नहीं लिखा है।