अनजान सफर अजनबी के साथ
अनजान सफर अजनबी के साथ
सफर अनजान ही तो था,
जब शुरू की
एक अजनबी के साथ
सात फेरे ले
रस्मों-रिवाजों के साथ
कच्ची-पक्की
पगडंडियां थी
लड़खड़ाते कदम कभी
तो कभी अनजाना भय था
और एक अनजान सफर
के हम दो राही
जब साथ चले
एक-दूजे का हाथ थामे
मुश्किलें कम हुई
राहें आसान
हर सफर अब
सुहाना लगने लगा
कुछ मीलों की दूरी में भी
मिठास बढ़ने लगी।