ग़ज़ल
ग़ज़ल
कितने सदमे उठाये नये दौर के,
गम सताने लगे हैं हमें जोर के।
आप रस्मे जमाना निभाते रहो,
रख दीया है हमारा दिल तोड़ के।
हमने चाही बहुत तेरी खुशियाँ सदा,
तुम चले हो मगर संग मेरा छोड़ के।
आश बढती गई प्यास बढती गई ,
चल पड़े तुम किधर रास्ता मोड़के ।
एक पल का कभी चैन पाया नहीं,
हमको जीना पड़ा बेबसी ओढ़के ।
थोड़ा हमपे करम कर दिजिये सनम
अब कहाँ जायें हम तेरा दर छोड़के।
खुब निभाई वफा हमने मासूम भला
यूं ही बैठे रहे खुदको झकझौर के ।