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Anand Ranjan

Inspirational

2.5  

Anand Ranjan

Inspirational

अँधेरा साया

अँधेरा साया

1 min
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इस साल जाने क्यों वो दिन ही नहीं आया
इस बार पलों को मैं गिन भी नहीं पाया
यूँ गुज़र गए ये पल इन फटी कमीज़ों में
जिन फटी कमीज़ों को मैं कभी सिल ही नहीं पाया

जाने कहाँ गए वो आंसू
हर बार छलकते थे पलकों पे जो मेरी आकर
इस बार के किस्सों में तो सिसकियों का सिलसिला भी नहीं आया

तपते दिन गए और शुष्क रातें भी चली गयी
न वसंत हुआ न कोई फूल खिला न कोई पंछी रहने को आया
बरसा तो था घनघोर बदल इस बार भी
पर जाने क्यों ख्वाबों की इस डाल पर कोई मंजर ही नहीं आया

न दिन हुआ न शाम हुई न रात की कोई बेला आयी
हर ओर बस सन्नाटा था जिसमें थी छुपी गहरी तन्हाई
लगता है जागते जागते ऐसा ही होता है
रौशनी की चाह होती है और दोस्ती कर लेता है एक अँधेरा साया


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